Sunday, February 23, 2025

माघी पूर्णिमा के अवसर और लक्ष्मण मंदिर के ऐतिहासिक पहलुओं पर पढ़िए पत्रकार डॉ नीरज गजेंद्र का लिखा- संस्कृति और धर्म के संगम में बोलता मौन प्रेम

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डॉ. नीरज गजेंद्र. रिश्ते अब पहले जैसे नहीं रहे। कभी जो त्याग और समर्पण की नींव पर टिके होते थे। वे अब अक्सर स्वार्थ और अहंकार की दरारों में बिखरते दिखते हैं। विवाह का बंधन, जो जीवनभर के साथ और भरोसे का प्रतीक था, आज छोटी-छोटी बातों में टूटता जा रहा है। इतिहास के पन्नों में एक प्रेम ऐसा भी दर्ज है, जो किसी दिखावे का मोहताज नहीं रहा। जिसने समर्पण को शब्दों से नहीं, बल्कि पत्थरों में उकेर दिया। एक प्रेम कहानी जो सदियों बाद भी शिलाओं में गूंजती है। हमें यह याद दिलाने के लिए काफी है कि सच्चा प्रेम मौन होता है। और अमर भी। छत्तीसगढ़ के सिरपुर में स्थित लक्ष्मण मंदिर केवल एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण और नारी के मौन त्याग की जीवंत निशानी है। यह कोई सामान्य मंदिर नहीं, बल्कि एक रानी द्वारा अपने राजा की स्मृति में बनाया गया वह प्रेम स्मारक है, जिसे समय की आंधियां भी मिटा नहीं पाईं। आज यह सिर्फ एक ऐतिहासिक धरोहर ही नहीं है। प्रेम की एक ऐसी निशानी भी है, जहां शब्द मौन हो जाते हैं और समर्पण बोल उठता है।

यह सातवीं शताब्दी की बात है। दक्षिण कौशल की पावन भूमि पर शैव परंपरा की गहरी जड़ें थीं, लेकिन वहीं मगध के सूर्यवंशी राजा सूर्यवर्मा की पुत्री वासटादेवी वैष्णव परंपरा में पली-बढ़ी थीं। उनका विवाह दक्षिण कौशल के राजा हर्षगुप्त से हुआ। प्रेम ने उनके रिश्ते को गहराई दी, लेकिन नियति ने इस प्रेम को जल्दी ही एक परीक्षा में डाल दिया। राजा हर्षगुप्त के असमय निधन ने रानी वासटादेवी को अकेला कर दिया। प्रेम की शक्ति इतनी प्रबल थी कि वह केवल आंसुओं तक सीमित नहीं रही। वासटादेवी ने अपने पति की स्मृति को चिरस्थायी बनाने का संकल्प लिया और इस प्रेम को शब्दों में नहीं, बल्कि लक्ष्मण मंदिर के रूप में ईंटों में उकेर दिया। यह ताजमहल से भी प्राचीन प्रेम स्मारक माना जाता है। जहां ताजमहल एक पुरुष की ओर से प्रेम का भव्य उद्घोष है, वहीं लक्ष्मण मंदिर प्रेम की निस्तब्धता में भी अपनी गहरी छाप छोड़ता है।

इतिहास गवाह है कि प्रेम की परीक्षा भावनाओं से ही नहीं, समय की चुनौतियों से भी होती है। 12वीं शताब्दी के विनाशकारी भूकंप और 14वीं-15वीं शताब्दी में आई महानदी की बाढ़ ने सिरपुर को लगभग मिट्टी में मिला दिया। कई मंदिर और भवन ढह गए, लेकिन लक्ष्मण मंदिर अडिग खड़ा रहा। मिट्टी की लाल ईंटों से निर्मित यह मंदिर समय की हर परीक्षा में सफल रहा और यह बताता है कि जो प्रेम और समर्पण की नींव पर खड़ा होता है, वह कालजयी बन जाता है। यही कारण है कि साहित्यकार अशोक शर्मा ने ताजमहल को पुरुष के प्रेम की मुखर अभिव्यक्ति कहा, और लक्ष्मण मंदिर को नारी के मौन प्रेम और त्याग का जीवंत प्रमाण माना।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने ताजमहल को समय के गाल पर जमा हुआ आंसू कहा था। लेकिन लक्ष्मण मंदिर को समय के भाल पर चमकती बिंदी कहा जा सकता है। यूरोपीय लेखक एडविन एराल्ड ने इसे लाल ईंटों से बना मौन प्रेम का साक्षी कहा। यह प्रेम की वह भाषा बोलता है, जो केवल महसूस की जा सकती है। लक्ष्मण मंदिर न केवल प्रेम और समर्पण का प्रतीक है, बल्कि यह धर्म, संस्कृति और प्रकृति के बीच संतुलन का भी आदर्श उदाहरण भी है। सिरपुर की भूमि शैव, वैष्णव, बौद्ध और जैन परंपराओं का केंद्र रही है। इस मंदिर की दीवारों पर विष्णु के दशावतार उकेरे गए हैं। जो उस काल की समृद्ध शिल्पकला और सांस्कृतिक चेतना को दर्शाते हैं। आज जब रिश्तों में अहंकार, उपेक्षा और स्वार्थ की दीवारें खड़ी हो रही हैं, तब लक्ष्मण मंदिर हमें यह सिखाता है कि प्रेम शब्दों से अधिक कर्मों में जीया जाता है। आज हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं। जहां रिश्तों में धैर्य कम हो रहा है। संवाद कमजोर पड़ रहा है। समझौते को कमजोरी समझा जा रहा है। पति-पत्नी के रिश्ते, जो कभी आजीवन साथ निभाने की प्रतिज्ञा पर टिके होते थे, वे अब छोटी-छोटी गलतफहमियों और अहंकार की आंधी में बिखर जाते हैं।

लक्ष्मण मंदिर हमें सिखाता है कि प्रेम की शक्ति इतनी गहरी होती है कि वह पत्थरों में भी जीवन डाल देती है। लक्ष्मण मंदिर केवल एक पुरातात्विक धरोहर नहीं, एक संदेश है। आज सिरपुर अपनी पुरातात्विक संपदा के कारण विश्व धरोहर बनने की ओर अग्रसर है। लेकिन क्या हम केवल इसे देखने और सराहने तक सीमित रहेंगे। लक्ष्मण मंदिर न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह हमें रिश्तों की गरिमा और प्रेम की शक्ति का पाठ भी पढ़ाता है। आज, जब रिश्ते आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं, जब त्याग और समर्पण को कमजोरी समझा जाने लगा है, तब लक्ष्मण मंदिर हमें बताता है कि प्रेम केवल कहने या जताने की चीज नहीं— प्रेम तो जीने की चीज है। शायद यही कारण है कि समय की हर आंधी के बावजूद, यह प्रेम और समर्पण की गाथा आज भी उतनी ही सजीव और प्रेरणादायक बनी हुई है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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