Sunday, February 23, 2025

छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव: एक दृष्टिकोण

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समरेन्द्र शर्मा.आज छत्तीसगढ़ में नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों के वोट डाले जाएंगे। इसके जरिए मतदाता प्रदेश के 10 नगर निगमों के महापौर, 49 नगर पालिका अध्यक्ष, 114 नगर पंचायतों के अध्यक्ष और वार्ड पार्षदों का चुनाव करेंगे। इस चुनाव की महत्ता इसलिए और बढ़ जाती है क्योंकि यह सीधे तौर पर आम नागरिकों से जुड़ी हुई छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान से जुड़ा होता है। सड़क, पानी, बिजली, सफाई, राशन कार्ड, जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र जैसी दैनिक जीवन की आवश्यक सेवाएं निकायों के जरिए ही आम आदमी तक पहुंचती हैं। ऐसे में वोटर जी जिम्मेदारी नगर और वार्ड का प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया में बढ़ जाती है और यह चुनाव केवल स्थानीय मुद्दों से ही जुड़ा नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण अवसर होता है जब लोग अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए नगर सरकार के प्रति अपनी राय व्यक्त करते हैं। इस चुनाव में किसी भी पार्टी के उम्मीदवार को जनता से मिलने वाले वोट सीधे तौर पर उनकी कार्यक्षमता और उनके द्वारा किए गए वादों पर निर्भर करते हैं, क्योंकि ये चुनाव बड़ी योजनाएं या विकास के बड़े मुद्दे पर नहीं होते, बल्कि यह एक ऐसा मंच है जहां स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और उम्मीदवार अपने वार्ड के हर छोटे-बड़े मुद्दों को हल करने का वादा करते हैं।

नगरीय निकाय चुनाव में व्यक्तिगत संबंधों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। लोग अधिकतर अपने ऐसे उम्मीदवारों को वोट देते हैं जिनसे उनका व्यक्तिगत जुड़ाव होता है या जिनसे उनका संपर्क अधिक होता है। उम्मीदवार अपने क्षेत्र में जाकर सीधे जनता से संवाद करते हैं, उनके समस्याओं को सुनते हैं और उन समस्याओं को हल करने के लिए अपने कार्यकाल के दौरान क्या कदम उठाएंगे, यह बताते हैं। इस चुनाव में उम्मीदवारों का व्यक्तिगत रूप से जनता से जुड़ाव और उनके साथ आपसी रिश्ते एक अहम भूमिका निभाते हैं।

हालांकि, बदलते दौर में व्यक्तिगत संबंधों के साथ राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा की जाने वाली घोषणाएं भी महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। चुनावी मौसम में जहां एक ओर भाजपा और कांग्रेस जैसे बड़े दल अपने अपने घोषणा पत्र लेकर सामने आते हैं, वहीं स्थानीय स्तर पर भी उम्मीदवारों तरह-तरह की घोषणाओं का ढेर लगा होता है। यह घोषणाएं बेशक वोटों के लिए होती हैं।

प्रदेश में हो रहे स्थानीय निकाय के चुनाव में सत्ताधारी पार्टी भाजपा ने “ट्रिपल इंजन की सरकार बनाने का नारा देकर पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा का यह नारा असर करता हुआ भी दिखाई दे रहा है. क्योंकि निकायों को विकास कार्यों के लिए राशि राज्य सरकार से मिलती है। आम मतदाताओं को लग रहा है कि राज्य और निकाय में एक ही दल की सरकार होने पर विकास ज्यादा प्रभावी ढंग से होगा। दूसरी तरफ, कांग्रेस इस चुनाव में औपचारिकता निभाती नजर आ रही है। भाजपा ने पूरी ताकत और संसाधनों के साथ प्रचार-प्रसार किया है, जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। कांग्रेस की ओर से प्रत्याशियों को उतारने के बाद भी पार्टी की कार्यप्रणाली और प्रचार में वह उत्साह और जोश नहीं दिखाई दे रहा है जो भाजपा के प्रचार में साफ नजर आ रहा है।

इन चुनावों से यह साफ संकेत मिलता है कि जब तक स्थानीय मुद्दों का समाधान नहीं होगा, तब तक राज्य और देश में बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती। लोगों की बुनियादी जरूरतों का समाधान करना और उनकी समस्याओं को सुनकर उनका निवारण करना ही लोकतंत्र की वास्तविक ताकत है। छत्तीसगढ़ के मतदाताओं को यह समझना होगा कि चुनावी घोषणाओं को बिना समझे उन पर भरोसा करना उनके भविष्य को प्रभावित कर सकता है। इसलिए उन्हें अपने प्रतिनिधि का चयन करते समय यह सुनिश्चित करना होगा कि वह उनकी समस्याओं को गंभीरता से ले और उन्हें हल करने के लिए ईमानदारी से काम करे।

छत्तीसगढ़ के नगरीय निकाय चुनाव न केवल स्थानीय मुद्दों के समाधान का अवसर है, बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि राज्य में राजनीतिक दल किस तरह अपनी ताकत और संसाधनों को प्रयोग में ला रहे हैं। भाजपा की सक्रियता और कांग्रेस की सुस्ती, दोनों ही इस चुनाव के परिणामों को प्रभावित कर सकती हैं। अंततः यह मतदाता की समझदारी पर निर्भर करेगा कि वह किसे अपना प्रतिनिधि चुनता है और किसे अपनी आवाज बनाते हैं।

(लेखक पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं।)

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