समरेंद्र शर्मा.छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय चुनाव के लिए वोटिंग होने के बाद अब सभी की नजरें परिणाम पर टिकी हुई हैं। 15 तारीख को राज्य के 10 नगर निगमों, 49 नगर पालिकाओं और 149 नगर पंचायतों की तस्वीर साफ हो जाएगी। मतदान के बाद मिल रहे संकेत और मुद्दों कुछ हद रूझानों को स्पष्ट करते हैं। हालांकि हम यहां रूझानों से ज्यादा उन संकेतों को समझने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके आधार पर नतीजे तय होंगे कि नगर में किसकी सरकार बनेगी। वैसे भी इन चुनावों का महत्व इस दृष्टि से ज्यादा है कि नतीजे राज्य सरकार की एक साल की उपलब्धियों पर आधारित हैं और परिणाम सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के लिए एक तरह का “लिटमस टेस्ट” साबित होगा।
आमतौर पर किसी भी टेस्ट या परीक्षा की समाप्ति के बाद पास-फेल और अंकों का आंकलन किया जाता है। इस चुनाव को हम एक परीक्षा की तरह परखने की कोशिश करते हैं, तो पाते है कि पहले विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव जैसी बड़ी परीक्षा में सफलता हासिल करने के बाद सत्ताधारी दल बीजेपी ने अपने परफार्मेंस को बेहतर का प्रयास जारी रखा है। चुनावी टाइम-टेबल जारी होने से परीक्षा यानी मतदान के दिन तक सत्ताधारी पार्टी बीजेपी की हर जगह बराबर उपस्थिति दिखी, जबकि कांग्रेस ने परीक्षा में शामिल होने की औपचारिकता भर निभाई। टिकट वितरण में बीजेपी ने बड़ा मास्टर स्ट्रोक रायगढ़ में खेला और वहां एक चाय वाले जीवर्धन चौहान को अपना महापौर का प्रत्याशी बनाकर सभी को चौंका दिया। जीवर्धन चौहान 29 वर्षों से राजनीति में सक्रिय हैं, लेकिन उन्होंने अपनी सामान्य जीवनशैली को कभी नहीं छोड़ा और आज भी चाय बेचकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। उनकी इस साधारण जीवनशैली ने मतदाताओं को आकर्षित किया, खासकर उन नेताओं के बीच जो राजनीति में आने के बाद अपनी सादगी खो बैठते हैं। उनकी यह विशेषता उन्हें सोशल मीडिया पर छा जाने का कारण बनी और गूगल पर “चाय वाला नेता” सर्च करने पर उनका नाम ट्रेंड करने लगा। यह बीजेपी के लिए एक सकारात्मक संकेत है, क्योंकि इससे यह संदेश भी गया है कि बीजेपी जनसाधारण के बीच में रहने वाले नेता को बढ़ावा देती है, जो अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है। ऐसे में उनकी चर्चा स्वाभाविक है। उनके सुर्खियों में रहने का एक बड़ा कारण यह भी है कि हमारे देश के सर्वोच्च पद प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे मोदीजी भी कभी चाय बेचा करते थे। उनके बाद रायगढ़ के जीवर्धन का नाम तेजी से उभरा।
वही प्रचार-प्रसार के मामले में भी बीजेपी ने खूब जोर लगाया। मुख्यमंत्री ने कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने के लिए सम्मेलन और रोड शो का आयोजन किया, जिससे कार्यकर्ताओं में जोश भरने के साथ-साथ मतदाताओं को भी रिझाने का काम किया। बीजेपी के प्रमुख मंत्रियों ने भी अपनी-अपनी चुनावी जिम्मेदारियों को गंभीरता से लिया और अपने-अपने क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार किया। यह बीजेपी की रणनीति का हिस्सा था कि हर निगम क्षेत्र में उनका प्रभाव मजबूत रहे।
वहीं कांग्रेस पार्टी ने नगरीय निकाय चुनावों में अपनी ताकत को उतना सुसंगठित नहीं किया। कुछ स्थानों पर चुनावी प्रचार में जोर डाला, लेकिन पार्टी के अधिकांश नेता मीडिया में बयानबाजी करते ज्यादा दिखाई दिए। कांग्रेस को टिकट वितरण के दौरान कई समस्याओं का सामना करना पड़ा और विरोध-प्रदर्शन की आशंका के चलते उम्मीदवारों की घोषणा आखिरी समय में आधी रात को की गई। यह स्थिति पार्टी की असमर्थता और असंगठित रवैया को दर्शाती है।
बीजेपी ने इस बार मेयर के लिए डायरेक्ट इलेक्शन प्रणाली को अपनाया, जबकि पिछले चुनावों में कांग्रेस ने पार्षदों के वोट से महापौर का चुनाव कराने का निर्णय लिया था। कांग्रेस के इस फैसले के पीछे इन आशंका को बल मिला कि डायरेक्ट चुनाव में पार्टी की हार की संभावना है, क्योंकि इस प्रणाली में उन्हें मतदाताओं के समक्ष जाने से रिजेक्ट होने का खतरा था। हालांकि, बीजेपी ने कांग्रेस के इस निर्णय को जारी रखने के बजाय डायरेक्ट चुनाव का विकल्प चुना, जिससे पार्टी ने जनता के बीच जाने का और अपने कार्यों का प्रचार करने का उचित समय देखा। बीजेपी का यह कदम यह साबित करता है कि वह जनता के बीच अपनी छवि को प्रोत्साहित करना चाहती है और उसे लगता है कि इससे पार्टी को व्यापक जनसमर्थन मिलेगा।
तमाम पहलुओं को देखते हुए संकेत मिल रहे हैं कि नगरीय निकाय चुनावों में बीजेपी को बड़ी सफलता मिल सकती है। पार्टी ने जहां अपनी मेहनत और सुसंगठित रणनीति से खुद को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया है, वहीं कांग्रेस ने चुनावी प्रक्रिया के दौरान असमर्थता नजर आई। बीजेपी की इस बार की रणनीति और जनता के बीच अपनी प्रभावी उपस्थिति उसे चुनावी लाभ दिला सकती है। साथ ही, यह चुनाव न केवल एक स्थानीय चुनाव है, बल्कि राज्य सरकार की एक साल की कार्यशैली का भी मापदंड बन चुका है, जो बीजेपी की स्थिति को और मजबूत करता है। 15 फरवरी को आने वाले परिणामों के बाद यह साफ होगा कि बीजेपी की मेहनत रंग लाई है या नहीं।
लेखक पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं।