डॉ. नीरज गजेंद्र. आपने सुना होगा, बदले की आग दूसरे को जलाने से पहले खुद को राख कर जाती है। अफसोस! आजकल हर तरफ यही आग फैली दिखती है। ऐसा लगता है कि लोग इसी आग में जीने लगे हैं। अख़बार उठाइए, टीवी देखिए, सोशल मीडिया स्क्रॉल करिए- हर जगह पुरानी रंजिश, सियासी दुश्मनी, व्यक्तिगत झगड़े और बदले की कहानियां ही नजर आती हैं। कोई सालों पुरानी दुश्मनी में किसी की जान ले रहा है, तो कोई चुनाव में हारने के बाद अपनी प्रतिद्वंद्विता को ज़हर बना रहा है। कहीं दोस्त ने दोस्त को मार दिया, तो कहीं परिवार के लोग ही एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं। क्या हमें इस सोच से बाहर नहीं आना चाहिए। क्या जीवन का असली मकसद यही रह गया है।
यूनानी दार्शनिक सुकरात ने कहा था, परिवर्तन का रहस्य यह है कि पुराने से लड़ने के बजाय, नए को रचने में अपनी ऊर्जा लगानी चाहिए। यानी अगर हम सच में आगे बढ़ना चाहते हैं, तो पुरानी कड़वाहट को छोड़कर आगे की सोचनी होगी। हमारे बुजुर्ग भी तो यही कहते आए हैं, बीती ताहि बिसार दें और आगे की सुध लें। लेकिन अधिकांश लोग क्या कर रहे हैं। पुरानी बातों में उलझे हुए हैं, और इसलिए आगे बढ़ने की सोच ही नहीं पा रहे।
इतिहास गवाह है कि असली विजेता वे हैं, जिन्होंने बदला लेने के बजाय खुद को बेहतर बनाने में अपनी ऊर्जा लगाई। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने अपनी आत्मकथा विंग्स आफ फायर Wings of Fire में लिखा है कि जब वे छात्र थे, तब एक शिक्षक ने उन्हें अपमानित किया था। वे चाहते तो गुस्से में आकर गलत रास्ता अपना सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने खुद को साबित किया, इतना ऊंचा उठाया कि वही दुनिया, जिसने उन पर हंसी उड़ाई थी, आज उन्हें मिसाइल मैन के नाम से जानती है। वास्तव में, यही असली बदला है! The Tata Group: From Torchbearers to Trailblazers नामक किताब में बताया गया है कि जब रतन टाटा अपनी नैनो कार लेकर आए, तो लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया। लेकिन उन्होंने आलोचनाओं का जवाब गुस्से से नहीं, बल्कि अपने काम से दिया। नतीजा, वे भारत के सबसे प्रतिष्ठित उद्योगपतियों में से एक बने।
सोचिए, अगर महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के जुल्म का बदला लेने के लिए हिंसा का रास्ता चुना होता, तो क्या हम आज़ाद होते। नहीं! उन्होंने बदले की भावना को छोड़कर अहिंसा को अपनाया और वही उनका सबसे बड़ा हथियार बन गया। यही असली ताकत है—नफरत और बदले की आग में जलने के बजाय, खुद को इतना महान बना लो कि तुम्हारी सफलता तुम्हारे दुश्मनों के लिए सबसे बड़ा जवाब बन जाए।
इन महापुरुषों की घटनाएं सिखाती हैं कि अगर किसी ने आपको ठुकराया, अपमानित किया, आपके खिलाफ साजिश रची, तो गुस्से में मत जलो। खुद को इतना आगे बढ़ाओ कि वही लोग तुम्हें सम्मान दें। ज़िंदगी बदले की नहीं, बदलाव की होनी चाहिए। यह तभी होगा, जब अपना समय और ऊर्जा नफरत में बर्बाद करने के बजाय, भविष्य को संवारने में लगाई जाए। याद रखें, सूरज अंधेरे से नहीं लड़ता, वह बस चमकता है और अंधेरा खुद ही खत्म हो जाता है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं