Monday, February 3, 2025
HomeDifferent Angleपढ़िए वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक राजनीतिक रणनीतियों के विश्लेषक डॉ. नीरज गजेंद्र...

पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक राजनीतिक रणनीतियों के विश्लेषक डॉ. नीरज गजेंद्र का लिखा- वोटर की ताकत : हकीकत, भ्रम और शिकारी का जाल

WhatsApp Group Join Now

डॉ. नीरज गजेंद्र. वोटर की ताकत! हर चुनाव से पहले और बाद में इस पर लंबी-लंबी बातें होती हैं। चुनावी भाषणों में इसे लोकतंत्र का आधार बताया जाता है। वोटर की ताकत का गुणगान किया जाता है। अगर उसने सांप्रदायिकता को हराया, तो उसे जागरूक बताया जाता है। अगर उसने सरकार बदल दी, तो उसकी विवेकशीलता की तारीफ होती है। और अगर उसने किसी को स्पष्ट जनादेश नहीं दिया, तो उसकी रणनीतिक चतुराई के किस्से गढ़े जाते हैं। लेकिन क्या यह सच में वोटर की ताकत का प्रमाण है। या पेशेवर राजनीतिज्ञ इसे अपनी सुविधा के अनुसार परिभाषित करते हैं। लोकतंत्र में वोटर सबसे बड़ा ताकतवर व्यक्ति होता है। यही कहा जाता है, पढ़ाया जाता है, समझाया जाता है। लेकिन क्या सच में ऐसा है। क्या वह ताकतवर है या सिर्फ चुनावी गणित का एक अंक। लेकिन क्या यह सब सिर्फ वही नहीं कह रहे जो उसकी ताकत से खेलना जानते हैं।

अब जरा छत्तीसगढ़ के मौजूदा नगरीय और पंचायत चुनावों को देखिए। वोटर की ताकत का जश्न मनाने वालों के लिए यह सबसे बड़ा आईना है। धमतरी, बसना, रायगढ़, सरायपाली, गरियाबंद, सुकमा जैसे कई क्षेत्रों में तो प्रत्याशी मैदान में उतरने से पहले ही वापस लौटाए जा रहे हैं। यह कौन-सी लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। चुनाव से पहले ही मैदान साफ करना, विरोधियों को बैठा देना, यह सब क्या है। यहां वोटर की ताकत कहां है। यहां जिसकी ताकत दिख रही है, उसे सभी समझ रहे हैं। पहले अंतागढ़ और अब दूसरे क्षेत्रों में दोहराया जा रहा है।

अब वोटर की समझ की भी बात कर लें। लोकतंत्र में वोटर की समझ पर सबसे ज्यादा चर्चा होती है। लेकिन उसने खुद अपनी ताकत को कहां समझा है। स्कूल में एक कहानी पढ़ी थी- एक शिकारी आता है। जाल फैलाता है। जाल में मत फंसो। और मजे की बात यह है कि वह तोते ही तरह यह जानते हुए भी जाल में फंसता है। यहां शिकारी उन्हें लुभावने वादों से ललचाता है। घोषणाओं की मीठी लेमन चूस पकड़ा देता है। वोटर उसे मुंह में रखता है और उसकी खटास में उलझ जाता है। इस खटास के नशे में वह भूल जाता है कि जाल से निकलने के लिए एकता में शक्ति होती है।

अब जरा सोचिए। कर्ज लिया, तो माफ क्यों होना चाहिए। चावल मुफ्त में क्यों बांटे जा रहे हैं। बेरोजगारी भत्ता की जगह रोजगार क्यों नहीं नहीं दिया जा रहा है। वोटर यह मांग क्यों नहीं करते कि ऐसी नीति बने कि मुफ्त में कुछ न बंटे, बल्कि वोटर में इतनी क्षमता आए कि वह खुद खरीद सके। वोटर की ताकत अब केवल एक चुनावी जुमला बनकर रह गई है। वह अब सशक्त नहीं, बल्कि प्रबंधित वोटर है। एक ऐसा वोटर, जिसे हर पांच साल में एक नई कहानी सुनाई जाती है। जिसे हर बार नए शिकारी का नया जाल फंसाता है।

लोकतंत्र में असली ताकत सिर्फ बैलेट बॉक्स में नहीं होती, बल्कि वोटर की जागरूकता में होती है। उसे यह तय करना होगा कि तथाकथित सुविधाएं उसकी मजबूती का प्रतीक हैं या उसे कमजोर करने का जाल। अब सवाल उठता है कि क्या यह वोटर कभी बदलेगा। क्या वह शिकारी के जाल को उखाड़ फेंकेगा। या फिर वह लेमन चूस के स्वाद में ही खोया रहेगा। अगर वोटर की ताकत सच में बचानी है, तो उसे लालच छोड़ना होगा। उसे मुफ्त की योजनाओं से बाहर निकलना होगा। उसे चुनावी घोषणाओं की मिठास से बचना होगा। वरना, यह ताकत सिर्फ शब्दों में ही रह जाएगी। अब यह वोटर को तय करना है कि वह शिकारी के जाल को उड़ाएगा या हर चुनाव में उसमें फंसता रहेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक-राजनीतिक रणनीतियों के विश्लेषक हैं)

WhatsApp Channel Follow Us
Telegram Group Join Now
WhatsApp Group Join Now
Admin
Adminhttps://www.babapost.in
हम पाठकों को देश में हो रही घटनाओं से अवगत कराते हैं। इस वेब पोर्टल में आपको दैनिक समाचार, ऑटो जगत के समाचार, मनोरंजन संबंधी खबर, राशिफल, धर्म-कर्म से जुड़ी पुख्ता सूचना उपलब्ध कराई जाती है। babapost.in खबरों में स्वच्छता के नियमों का पालन करता है। इस वेब पोर्टल पर भ्रामक, अपुष्ट, सनसनी फैलाने वाली खबरों के प्रकाशन नहीं किया जाता है।
RELATED ARTICLES

Most Popular